सद्गुरु महिमा
- Mokshsundar Maharajsaheb

- Sep 5
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🙏जय आदिनाथ 🙏
🙏जय गुरदेव 🙏
✍️ सदा नो साथी 🌹🌹
🌹🌹🌹🌹🌹
*सद्गुरु महिमा*
गुरुतत्व व ईश तत्व,
दोनों तत्व हैं एक।
सद्गुरु व परमात्मा,
भिन्न नहीं हैं एक।
प्रभुदर्शन की प्यास से,
दरश गुरु का होय।
प्रभुदर्शन इच्छा जगे
जीव योग्य तब होय।
परम कृपा करके गुरु
आते शिष्य के पास।
योग्य बने जब जीव तो
होता गुरु संगाथ।
सद्गुरु दुर्लभ हैं नहीं,
सद्गुरु सहज ही प्राप्य।
योग्य शिष्य दुर्लभ बहुत,
योग्य शिष्य अप्राप्य।
प्रभुदर्शन की कामना,
तीव्र हृदय में होय।
कहलाता सच्छिष्य वो,
दुर्लभ अतिशय होय।
होवे जब सच्छिष्य तब,
सद्गुरु चलके आये।
बरसे जब हरिकी कृपा
दर्शन गुरु का पाये।
सद्गुरु व भगवान में,
किंचित् कुछ ना भेद।
भले दिखें ये दो मगर,
इनमें पूर्ण अभेद।
सद्गुरु ईश से श्रेष्ठ हैं,
कहते शास्त्र - पुराण।
सद्गुरु करवाते हमें
ईश्वर की पहचान।
सभी देव से सद्गुरु
होते कहीं महान्।
हो जबतक न गुरुकृपा,
मानव पशु समान।
दीक्षा देकर शिष्य को,
जनम नया गुरु देत।
रक्षण-पोषण कर सदा
पाप नष्ट कर देत।
पिता - पुत्र के प्रेम में,
है स्वारथ की गंध।
गुरु - शिष्य संबंध में,
स्वारथ रहित सुगंध।
करुणा करके शिष्य पर,
प्रभु से मिलन कराय।
दर्शन प्रभुका होत ही,
भूल सकल जग जाय।
सब जीवों में सर्वदा,
जिसे दरश प्रभु होय।
उसी गुरु में शिष्य को
दरश प्रभु का होय।




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